अस्पृश्यता समाज के लिए एक कलंक है। यह परंपरा आज की बनाई हुई नहीं है बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है। प्राचीनकाल में समाज ने लोगों को उनके कार्यों के आधार पर बांट दिया। जो वर्ग उच्च वर्ग के लोगों की सेवा करता चमड़े का काम करता, गंदगी को साफ करता, उसे निम्न वर्ग का दर्जा दिया गया। इन लोगों के काम की वजह से उच्च वर्ग के लोग उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते थे, उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे और उन्हें अस्पृश्य मान लिया गया। अतः अस्पृश्यता से तात्पर्य है उच्च वर्ग के लोगों द्वारा इन वर्ग के लोगों पर थोपी गई छुआछूत की भावना।
प्राचीन काल में निम्न जाति के व्यक्तियों को समाज से अलग रखने का प्रयत्न किया जाता था। वर्तमान समय में भी साधारण व्यक्ति के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है लेकिन यदि वह व्यक्ति उच्च पद पर प्रतिष्ठा वाला है तो उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता है। अतः अस्पृश्यता केवल जाति या रोग के कारण ही नहीं बल्कि धन-संपत्ति पद प्रतिष्ठा के कारण भी होती है। सामान्यतः देखा जाता है कि जिस किसी व्यक्ति को जिसके पास खाने के लिए न भोजन हो, न तन ढकने के लिए कपड़े हो उसे अलग ही नजरों से देखते हैं या उसके प्रति अलग भावना रखते हैं भले ही वह व्यक्ति सजातीय क्यों ना हो। अतः अस्पृश्य से तात्पर्य उन लोगों से है जिन्हें सामाजिक तथा वैज्ञानिक क्षेत्र से बहिष्कृत कर दिया हो।
समाज के हित की दृष्टि से देखा जाए तो मेरी दृष्टि में अस्पृश्यता से समाज को हानियां ही हानियां है। लाभ की कल्पना तो हम सपनों में मैं भी नहीं कर सकते हैं। यदि हम निम्न जाति के व्यक्तियों के प्रति द्वेष और ईशा की भावना रखेंगे तो निश्चय ही इनमें कुंठा उत्पन्न होगी और वह हीन भावना से ग्रसित होकर आगे बढ़ने में संकोच महसूस करेंगे तथा उनमें छिपी उनकी बुद्धि की प्रखरता कौशल चातुर्य लोगों के सामने नहीं आ पायेगा।
हम जानते हैं कि समाज व देश की उन्नति उस में निवास कर रहे लोगों से ही संभव है। आज हमारे देश में लाखों-करोड़ों अस्पृश्यता के शिकार हुए लोग हैं। यदि हम उनको प्रोत्साहित करके आगे बढ़ाएं तो देश की उन्नति निश्चित है। इस कथन को सिद्ध करने के लिए हम हमारे संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर का ही उदाहरण ले सकते हैं। इन्हें भी लोगों ने अस्पृश्यता का शिकार बनाया। स्कूल में इनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता था, किसी से बोलने का भी अधिकार प्राप्त नहीं था किंतु डॉक्टर अंबेडकर जी ने हार नहीं मानी और अपने जीवन पथ पर उन्नति की ओर अग्रसर रहे। यदि डॉक्टर अंबेडकर भी इस हीन भावना से ग्रसित हो जाते तो आज उच्च वर्ग के लोग जिन अधिकारों की बात करते हैं वह हमारे पास नहीं होते।
डॉ अंबेडकर जैसे महापुरुषों के कारण ही आज हमारा देश उन्नति कर रहा है। हमारा संविधान विश्व में सबसे लंबा और लिखित संविधान है जिसमें सभी वर्गों के लोगों को समान अधिकार दिए गए हैं किसी से कोई भेदभाव नहीं किया गया।
निम्न जाति के व्यक्ति भी समाज में उन्नति करना चाहते हैं नाम कमाना चाहते हैं, उनके भी कुछ सपने हैं कुछ अरमान हैं जिन्हें हर हाल में पूरा करना चाहते हैं किंतु उच्च वर्ग के लोग उनके इस इच्छा को एक छोटी सी ही दृष्टि से देख कर तहस-नहस कर देते हैं उनका अपने ऊपर से विश्वास डगमगा जाता है। वह अपने आप को बिना पंख से पूछताछ बच्ची की तरह समझने लगते हैं जिनका इस संसार में समाज में कोई स्थान नहीं है जिसे ईश्वर ने केवल अपमानित होने के लिए ही बनाया है। जब यह हीन भावना उनमें घर कर जाती है तो वह चाहकर भी उन्नति नहीं कर पाते।
समाज सुधारक प्रत्येक युग में इसके विरूद्ध आवाज उठाते आए हैं। हमारे साहित्य समाज में कहा गया है -
जात पात पूछे नहीं कोई
हरि को भजे सो हरि को होई
अस्पृश्यता की समस्या को कई महापुरुषों ने दूर करने का प्रयास किया जिसमें एक थे हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। गांधी जी ने निम्न जाति के लोगों को समाज में ऊंचा उठाने के लिए हरिजन नाम की संज्ञा दी वहीं दूसरी ओर प्रत्येक हरिजन को पढ़ने के लिए सरकार द्वारा छात्रवृत्तियां प्रदान की जाती हैं ताकि वह अपनी पढ़ाई सुचारू रूप से जारी रख सकें तथा उसके मार्ग को कठिनाई रहित बनाने के लिए सरकार ने हरिजनों को आरक्षण भी प्रदान किए।
इस समस्या से काफी नुकसान देश को ही उठाना पड़ता है जनता व सरकार का भी यह कर्तव्य बनता है कि वे हरिजनों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें उनके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करें और उनके साथ सद्भावना रखें। अंत में मैं यही कहना चाहती हूँ -
मनुज मनुज में भेद न करना
प्रांत प्रांत के वासी
छुआछूत को दूर भगाए
हम भारत के वासी
जय हिंद